Thursday, July 28, 2016

बोझा ...!!!


ज़ख्म यूँ भी छुपाए जाते हैं...
बेवजह मुस्कुराए जाते हैं ;
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रख लिया है भरम यूँ रिश्तों का...
जान कर धोखे खाए जाते हैं ;
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जिसको जन्नत हमें बनाना था...
उसको दोज़ख बनाए जाते हैं ;
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दिल मिले सबसे या मिले न मिले...
हाथ सबसे मिलाए जाते हैं ;
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हर कोई है थका , थके हैं क़दम...
लोग बोझा उठाए जाते हैं ;
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यूँ तो आपस में हँस के मिलते हैं...
दिल हसद से जलाए जाते हैं ;
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दूसरे पल की है ख़बर किसको...
फिर भी सपने सजाए जाते हैं ;
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बाद मरने के क्या मिलेगा उन्हें...
इस जहाँ को जो मिटाए जाते हैं ;
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उनकी आँखों में प्यार पाने को....
उनसे नज़रें मिलाए जाते हैं ;
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होड़ आगे निकलने की है लगी...
दूसरों को गिराए जाते हैं ;
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ये सुना था कि रोशनी होगी...
घर को तरुणा जलाए जाते हैं...!!
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.................................'तरुणा'....!!!


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