Saturday, July 2, 2016

जाने पहचाने लोग...!!!



लोग अनजाने भी मुझको जाने-पहचाने लगे ...
मुस्कुराए इस तरह बरसों के याराने लगे ;
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मदभरी नज़रों से देखा दिल को धड़काने लगे ..
किस तरह वो दिल के वीराने को महकाने लगे ;
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शम्स को क्या दोष दें हम इस कड़कती धूप का..
जब ये सावन के ही बादल आग बरसाने लगे ;
(शम्स-सूरज)
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ज़िंदगी की तल्ख़ियाँ जिनको रुला पाईं न थीं ..
ज़ख़्म सहलाये जो उनके अश्क बरसाने लगे ;
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चारदीवारी में जिनके साथ गुज़री ज़िंदगी...
बाद मुद्दत के अचानक क्यूँ वो अनजाने लगे ;
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ढेर में थी राख के मैं एक चिंगारी दबी.....
साज़िशें कर के हवा से मुझको सुलगाने लगे ;
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पास जिनके मैं गई तरुणामदावे के लिए...
वो ही चारागर मुझे ख़ुद ज़ख़्म दिखलाने लगे...!!
(मदावा-इलाज, चारागर-डॉक्टर)
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.......................................................'तरुणा'...!!!

















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