छोड़ कर अब हम किनारा आ गए तूफान
में...
देखना है जोर कितना अब बचा है जान
में ;
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कर लिया तामीर हमने खूबसूरत
आशियाँ...
थी मगर ख़ुशियाँ बहुत टूटे हुए दालान
में ;
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दश्त की चाहत जिसे हो या तलब सहरा
की हो..
प्यास उसकी क्या बुझेगी अब किसी
बारान में ;
(दश्त-जंगल , बारान-वर्षा)
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इश्क़ में बेचैनियाँ जिसको मिली हो
अनगिनत...
फिर मज़ा आए कहाँ से उसको इत्मीनान
में ;
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अजनबी जब हो गए तो क़ुर्बतें कुछ हो
गईं....
फ़ासला कितना रहा बरसों रही पहचान
में ;
(क़ुर्बतें-नजदीकियाँ)
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भूल जाओ तुम उसे मैं भी भुला दूँगी
उसे..
दोस्ती खोई हमारी एक जिस अहसान में ;
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सौ दफ़ा मानी तुम्हारी बात गो वाज़िब
न थी..
किस क़दर था अपनापन हर इक नए फरमान
में ;
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जो निग़ाहों में मेरी 'तरुणा' रहा है नासमझ..
प्यार ढूँढा मैंने अब तक भी उसी
नादान में..!!
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............................................................'तरुणा'...!!!
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