Wednesday, January 2, 2013

तुम ज़िन्दा हो.....


तुमने सही....इतनी तड़प....
अथाह पीड़ा और...नासूर सा दर्द....
और उस तकलीफ़ में....थी...
जीने की चाह भी.....
जीना चाहती हूँ....मैं....
पर अचानक...वो सब...
वो घृणित हादसा...वो तलवार सी बातें...
काट के रख गई....तुमको...
तन ज़ख्मी.....मन घायल.....
वीरानी आँखों में...न जाने कितनी...
जिस्म से टपकता....लहू तुम्हारा....
न जाने...कब...कैसे...हममें से....
हर एक के बदन का...हिस्सा बन गया....
तुम्हारी रूह...घर कर गई...हमारे जिस्मों में...
तुम्हारा बहता लहू....दौड़ने लगा...हमारी रगों में...
वो अथाह पीड़ा....नासूर सा दर्द...
उठने लगा...कहीं गहरे तक हमको....
चुभने लगा...हमारी अंतरात्मा में....
तुम तो खामोशी से बन गई...एक सितारा...
पर जी उठी...हमारी रूह में...सिर्फ तुम...
तुम थीं...अकेली..अब तक...
अब रोशन हो...हर एक जिस्म-औ-जाँ में...
तुम्हारी भयंकर पीड़ा...बहती है...हमारे जिस्मों में...
तुम्हारी चीखें...बन गई हैं...आवाज़ हमारी..अब..
तुम्हारी तड़प से कसकतें हैं...बदन हमारे...
तुम जिंदा हो....एक नहीं लाखों में....
हम सब में..अब तुम ही रहती हो...
है..वादा तुमसे....
जब तक ये चीख़ें पहुंचेंगी..न हर एक कान तक...
न सोने देंगे...हम किसी भी इंसान को...
न बैठने देंगे...चैन से...
इन हुकुमरानो को....
वादा है....हमारा तुमसे....
क्यूंकि अब तुम हर एक में जिंदा हो...
हर एक में....
............................................तरुणा||


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