Friday, November 30, 2012

ये तन्हाईयां......


मुझे पता है..कि तुम भी...
मेरी तरह ही...जलते होगे....
कभी-कभी रातों को....
मोम बनकर...पिघलते ही होगे..
या फिर सर्द-गर्म...रातों मे अक्सर..
जागते हुए करवटें बदलते ही होगे...

मेरे हमनवां...मेरे हमसफ़र छुपा लो
किसी से भी....तुम दिल की बात 
पर मैं जानती हूँ कि दिल ही दिल मे
कभी यूँ ही तुम भी तड़पते तो होगे...
कभी-कभी कुछ याद करके तन्हाइयों मे अक्सर
आँसू तुम्हारी आँख से.....निकलते ही होंगे...

सुना करते आए थे हम आज तक ये..
शमा ही है जलती वही है पिघलती...
मगर अब तो तुम भी...उसी आँच पर ही
परवाने की तरह.....रोज जलते ही होगे...

खुदा जाने होगा क्या अंजाम अपना...
क्या होगा फ़ैसला इस तकदीर का....
यही सोच कर यूँ अकेले मे अक्सर....
मेरी तरह तुम भी सिसकते तो होगे...
सिसकते तो होगे............
.....................................तरुणा||

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