Wednesday, November 21, 2012

चाँद रात...........


चाँद को देख आज फिर...दिल ने है ली अंगड़ाई.....
वो प्रियतम की याद ने..फिर फूलों की सेज सजाई..

बात उस रात की है.....जब हम तुम थे संग-संग
जब प्रेम की चाँदनी से....भीगा था मेरा अंग-अंग
जब आँखों ही आँखों में....बुने थे कुछ सपने....
जब धड़कनों ने गुनगुनाए...थे अनसुने से नग्मे 
जब साँसों की थरथराहट......में डूबने लगे थे...
और होंठों की कपकपाहट.....में मिलकर बहे थे
ना जाने कितनी बातें.....बिन बोले कही थी...
अंजाने सफ़र में मैं....तुम संग चली थी....
प्रिया और प्रियतम.....एक दूजे में खोकर...
लगे बाँधने कुछ......बंधन नये थे........
जब चाँद मुस्कुराया था......और तारे हँसे थे
सुरों से हमारे......नये गीत बज उठे थे...

और आज स्याह रात में..हूँ मैं बिल्कुल अकेली
बस यादें है तुम्हारी....और तन्हाई सहेली....
कमजोर था क्यूँ इतना....वो हमारा जुड़ाव
बहुत पीछे छोड़ आए....हैं हम वो पड़ाव....
वो होंठों के नग्मे.....निशब्द हो गये क्यूँ?
वो रिश्ता..वो बंधन.....अनाम रह गये क्यूँ?
है चाँद आज रात भी.....और तारे हैं चंचल
पर दिल के तार मेरे....क्यूँ गये हैं आज रात जल

अंतर इन दो रातों का....कभी मिट सकेगा क्या?
हमारे प्यार का फिर....दिया जल सकेगा क्या?
है दोनो ही रातें......स्याह और अकेली....
पर एक है अमावस तो....दूजी वधू नवेली
पुकारता है ये दिल....तुम एक बार आओ
अंधेरी रात को मेरी....तुम फिर से सजाओ
इन दोनो का अंतर....तुम फिर से मिटाओ
ना अपनी प्रिया को....तुम इतना सताओ..
ना इतना सताओ........ना इतना सताओ...
.............................................तरुणा||

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